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कविता

तसवीर

अभिज्ञात


कभी भी अच्छी नहीं आई उसकी तसवीर
खुद फोटोग्राफर भी रहते थे हैरान
क्या है ऐसा कि वह दिखता तो ठीक-ठाक है
लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद
वे संतुष्ट नहीं हो पाते थे अपनी ही खींची गई तसवीरों से

जिंदगी आगे बढ़ती गई और लेकिन तसवीरें खिंचती रहीं बेजान, अनाकर्षक, निस्तेज, उदास
नकली भावों वाली
चेहरा लगता था जैसे हो मुखौटा
कई बार तो एक तसवीर का चेहरा नहीं मिलता था दूसरी तसवीर से
लोग सहसा नहीं पहचान पाते थे कि किसकी है तसवीर
उसके घर वाले भी नहीं, बाल-बच्चे, पत्नी, दोस्त
सबको बताना पड़ता
वही है वह जिसकी तसवीर ली गई है

अचानक एक दिन
वह नहीं रहा
और बस पीछे रह गई ढेर सारी तसवीरें
हैरत की उसके जाते ही आ गई तसवीरों में जान

उसकी हर अदा जानी-पहचानी
उसका हँसना, उसकी उदासी सब कुछ तो थी
जैसे एकदम सामने हो वह
बाल-बच्चों ने जब बनवाई उसकी आदमकद तसवीर
तो एकाएक लोग अचंभित हो जाते
जैसे वह खड़ा हो सामने सचमुच।
लोग कहते हैं अब वह अपनी तसवीरों में जिंदा है
क्या किसी के जाने के बाद जान आ जाती है तसवीरों में!!


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